सीरिया में हिंसा का खौफनाक मंजर: रमज़ान में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाकर की जा रही हत्याएं
दमिश्क/अलेप्पो – सीरिया एक बार फिर दुनिया के सामने मानवता को शर्मसार कर देने वाली हिंसा और अत्याचारों का प्रतीक बनकर खड़ा है। रमज़ान जैसे पवित्र महीने में जब शांति, संयम और मानवता की मिसाल पेश की जाती है, वहां के कई इलाकों में महिलाओं को खुलेआम निर्वस्त्र कर सड़कों पर दौड़ाया गया और फिर क्रूरता से उनकी हत्या कर दी गई। यह घटनाएं न केवल सीरिया बल्कि समूची मानव सभ्यता के चेहरे पर बदनुमा धब्बा हैं।
सीरिया की नई सत्ता और उग्रता का दौर
पिछले कुछ महीनों में सीरिया में सत्ता परिवर्तन के बाद जिस तरीके से सरकार समर्थक सुन्नी मुस्लिम गुटों ने कई शहरों पर कब्जा जमाया है, उसने देश को फिर एक बार गृहयुद्ध और सांप्रदायिक उग्रवाद की आग में झोंक दिया है। विपक्षी गुटों और जातीय-धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ जिस प्रकार के दमनात्मक कदम उठाए जा रहे हैं, उसने सीरिया को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बार फिर विवादों में ला दिया है।
महिलाओं के खिलाफ बर्बरता
हिंसा की सबसे भयावह तस्वीर उन घटनाओं से उभरती है, जिनमें महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र कर सड़क पर दौड़ाया गया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और फिर नृशंस हत्या कर दी गई। रमज़ान जैसे पाक महीने में इस प्रकार की क्रूरता ने न केवल स्थानीय नागरिकों को बल्कि वैश्विक मानवाधिकार संगठनों को भी स्तब्ध कर दिया है।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कुछ घटनाओं में महिलाओं को पहले पकड़कर सार्वजनिक रूप से ‘राजद्रोही’ या ‘धार्मिक अपराधी’ करार दिया गया, फिर उन्हें भीड़ के सामने अपमानित करते हुए नग्न कर दौड़ाया गया, और अंततः मौत के घाट उतार दिया गया। कुछ मामलों में वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल भी किए गए, जिससे और भय और आतंक फैल सके।
पुरुषों को ‘कुत्तों’ की तरह चलने पर मजबूर
केवल महिलाएं ही नहीं, पुरुषों को भी अपमानित करने और मानसिक यातना देने के लिए अत्यंत अमानवीय तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। कुछ इलाकों में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों और विपक्षी समुदायों से जुड़े लोगों को सड़कों पर घुटनों के बल ‘कुत्तों’ की तरह रेंगने के लिए मजबूर किया गया। सोशल मीडिया पर इन घटनाओं के कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिनमें सैनिक हंसते हुए आम नागरिकों को धमकाते, मारते और रेंगने को मजबूर करते दिखते हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
इन घटनाओं ने संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल, और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी कई संस्थाओं को चौकन्ना कर दिया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “सीरिया में हो रही यह बर्बरता न केवल अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि एक साफ-साफ जेंडर आधारित नरसंहार है।” संयुक्त राष्ट्र ने सीरिया सरकार से तत्काल हिंसा रोकने और दोषियों को सजा देने की मांग की है।
मुस्लिम जगत की चुप्पी पर सवाल
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मुस्लिम देशों के अधिकांश नेता, मौलवी और संगठन इस बर्बरता पर चुप्पी साधे हुए हैं। रमज़ान जैसे पाक महीने में जब इस्लाम दया, करुणा और संयम की बात करता है, तब सीरिया में इस्लाम के नाम पर महिलाओं के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। यह सवाल उठता है कि क्या धार्मिक चुप्पी किसी भी तरह से इन अपराधों में मौन समर्थन का संकेत है?
सामाजिक और मानसिक प्रभाव
सीरिया में हो रही इस प्रकार की बर्बरता का असर केवल उन लोगों तक सीमित नहीं है जो प्रत्यक्ष रूप से पीड़ित हैं, बल्कि पूरा समाज एक भय और अविश्वास के माहौल में जीने को मजबूर है। महिलाएं घर से बाहर निकलने में डरती हैं, बच्चे मानसिक रूप से टूटते जा रहे हैं, और युवाओं के बीच आक्रोश और अवसाद दोनों ही बढ़ रहे हैं।
समाधान की तलाश
इस संकट से निकलने के लिए केवल राजनैतिक हल पर्याप्त नहीं होगा। एक समावेशी और मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सीरिया में अंतरराष्ट्रीय शांति बलों की तैनाती, मानवाधिकार संगठनों को स्वतंत्र निगरानी की अनुमति, और दोषियों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही ज़रूरी हो गई है।
अंत में, यह ज़रूरी है कि दुनिया सिर्फ बयानबाज़ी न करे, बल्कि ठोस कदम उठाए। हर एक महिला जो अपमानित हुई, हर एक पुरुष जिसे रेंगने पर मजबूर किया गया, और हर बच्चा जो खौफ में जी रहा है – वो हमारी सामूहिक असफलता का प्रतीक हैं।
अब समय है कि दुनिया ‘सीरिया’ को सिर्फ एक युद्ध क्षेत्र नहीं, बल्कि इंसानियत के लिए एक इम्तिहान के रूप में देखे।
