बिजली उपभोक्ताओं की पीड़ा: कब तक मौसम का बहाना और अंधेरे का सिलसिला?

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बिजली उपभोक्ताओं की पीड़ा: कब तक मौसम का बहाना और अंधेरे का सिलसिला?
— विशेष रिपोर्ट

गर्मी आई तो ट्रांसफार्मर गर्म होकर जवाब दे गया।
बारिश आई तो बिजली के खंभे धराशायी हो गए।
आंधी चली तो पेड़ तारों पर गिर गए और सप्लाई ठप।
और जब कुछ भी नहीं हुआ, तब भी “लाइन मेंटेनेंस” के नाम पर घंटों बिजली गुल रही।

यह कहानी केवल एक जिले की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की है। हर मौसम में बिजली विभाग की असफलता और आम जनता की परेशानी अब एक परंपरा बन गई है। उपभोक्ता पूछ रहे हैं—क्या सिर्फ हम ही हर गलती की कीमत चुकाएंगे?

बिजली विभाग से जुड़े कुछ बुनियादी सवाल अब जवाब मांग रहे हैं:

  1. क्या उपभोक्ताओं से हर महीने मेंटिनेंस शुल्क नहीं वसूला जाता?

  2. क्या विभाग के अधिकारी-कर्मचारी को पूरी तनख्वाह नहीं दी जाती?

  3. क्या समय पर बिल जमा न करने पर उपभोक्ताओं से लेट फीस नहीं वसूली जाती?

  4. क्या सरकार द्वारा विभाग को लाइन-मेंटिनेंस और अधोसंरचना सुधार हेतु बजट नहीं दिया जाता?

  5. क्या ठेकेदारों द्वारा की जा रही मेंटिनेंस का विभागीय निरीक्षण नहीं होता?

  6. क्या ट्रांसफॉर्मर और ओवरहेड लाइनों का नियमित रखरखाव नहीं किया जाना चाहिए?

  7. क्या जर्जर पोल व तार बदलने के लिए बजट नहीं मिलता या फिर उसका उपयोग कहीं और हो जाता है?

बिजली विभाग का रवैया ऐसा प्रतीत होता है मानो यह देश में पहली बार गर्मी, बारिश या आंधी आ रही हो।
पत्ते हिलने से पहले बिजली गुल,
बारिश की बूंदें गिरने से पहले सप्लाई बंद,
तेज धूप में ट्रिपिंग का खतरा—
क्या अब बिजली प्राकृतिक आपदा से भी पहले चली जाएगी?

विभागीय अधिकारी एसी कमरों में बैठकर सोशल मीडिया पर “लाइन ठीक की जा रही है” जैसे संदेश जारी कर देते हैं। पावर हाउस में लगाए गए हेल्पलाइन नंबर अक्सर व्यस्त मिलते हैं या फिर बजते ही नहीं।
क्या इस चुप्पी और लापरवाही की भी कोई कीमत तय की जानी चाहिए?

जनता अब सिर्फ उपभोक्ता नहीं, करदाता भी है—
वह हर महीने बिजली बिल में टैक्स और शुल्क चुका रही है,
वह लेट फीस भरती है,
वह नियमों का पालन करती है।

तो फिर कब विभाग जवाबदेह होगा?

क्या बिजली विभाग की विफलता पर कोई जुर्माना तय होगा?
क्या जनता को मिलेगी किसी असुविधा पर क्षतिपूर्ति?
या फिर यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा?

बिजली विभाग को यह समझना होगा कि
अब जनता सिर्फ बिल नहीं भर रही, वह सवाल भी पूछ रही है।


[यह लेख जनता की ओर से एक खुला प्रश्न है—बिजली विभाग उत्तर देने को बाध्य है।]

शीर्षक सुझाव प्रिंट के लिए:

  • “बिजली गई… अब जवाब चाहिए!”

  • “जनता पूछती है: कब तक अंधेरे में रखोगे?”

  • “लाइन फेल नहीं, व्यवस्था फेल है”

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