विश्व धर्मशाला एवं प्रशामक देखभाल दिवस पर संकल्प – गंभीर रोगियों के जीवन में नया उजाला

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विश्व धर्मशाला एवं प्रशामक देखभाल दिवस पर संकल्प – गंभीर रोगियों के जीवन में नया उजाला

लखीमपुर खीरी में शनिवार को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत राष्ट्रीय प्रशामक देखभाल कार्यक्रम (एनपीपीसी) के तहत विश्व धर्मशाला एवं प्रशामक देखभाल दिवस बड़े ही गरिमामय वातावरण में मनाया गया। इस वर्ष की थीम – “उपशामक देखभाल तक सर्वभौमिक पहुंच के वादे को पूरा करना” – को साकार करने के उद्देश्य से जिले के वरिष्ठ चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों ने आमजन को संवेदनशीलता और जागरूकता का संदेश दिया।


गंभीर रोगियों के जीवन में उम्मीद की किरण – डॉ. अमित सिंह

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नोडल अधिकारी एनसीडी/डिप्टी सीएमओ डॉ अमित सिंह ने कहा कि पैलियेटिव केयर सिर्फ चिकित्सा नहीं बल्कि मानवता की सबसे संवेदनशील सेवाओं में से एक है। यह उन लोगों के लिए जीवन का सहारा है जो कैंसर, किडनी फेल्योर, हृदय या अन्य लाइलाज रोगों से जूझ रहे हैं। यह देखभाल न केवल शारीरिक दर्द को कम करती है बल्कि रोगी के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक पहलुओं को भी मजबूती देती है।

उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 1000 में करीब 6 व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें पायलियेटिव केयर की आवश्यकता होती है, लेकिन पूरी दुनिया में केवल 1 प्रतिशत आबादी ही इसका लाभ उठा पाती है। यह स्थिति बताती है कि इस सेवा को जन-जन तक पहुँचाना समय की सबसे बड़ी मांग है।


“पैलियेटिव केयर – जीवन के अंतिम समय में सम्मान के साथ जीने का अधिकार”

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ रचित मिश्रा ने कहा कि इस दिवस का उद्देश्य केवल दिवस मनाना नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता को बदलना है। अक्सर लोग यह सोचते हैं कि पायलियेटिव केयर सिर्फ मृत्यु के अंतिम चरण में दी जाती है, जबकि सच यह है कि यह सुविधा रोग की शुरुआत से ही दी जानी चाहिए ताकि मरीज शारीरिक दर्द, मानसिक तनाव और सामाजिक उपेक्षा से बच सके।


“हर अस्पताल में स्क्रींनिंग कैम्प – ‘अर्ली पायलियेटिव केयर’ की पहल”

डॉ राकेश गुप्ता ने जानकारी दी कि मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ संतोष गुप्ता के निर्देशन में जिले के जिला अस्पताल, सीएचसी और पीएचसी स्तर पर विशेष शिविर लगाए गए, जहां गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों की पहचान कर उन्हें “अर्ली पायलियेटिव केयर” से जोड़ने की पहल की गई। उन्होंने कहा — “कई बार मरीज इलाज की उम्मीद छोड़ देते हैं, लेकिन पायलियेटिव केयर उन्हें बताती है कि ‘भले ही बीमारी असाध्य हो, जीवन जीने की उम्मीद अभी बाकी है’।”


विशेषज्ञों का एक सुर – “दर्द सिर्फ शरीर में नहीं होता, आत्मा में भी होता है”

इस कार्यक्रम में डॉ रोहित पाठक, डॉ एके द्विवेदी, डॉ अखिलेश शुक्ला, डॉ शिखर बाजपेई, डॉ शिशिर पांडे, डॉ इंद्रेश राजावत सहित कई विशेषज्ञ मौजूद रहे। सभी वक्ताओं ने कहा कि पैलियेटिव केयर किसी व्यक्ति के लिए केवल उपचार नहीं बल्कि सम्मान है। मरीज को यह एहसास दिलाना कि वह अकेला नहीं है — यही इस देखभाल की सबसे बड़ी सफलता है।


समाज से अपील – “बीमारी से लड़ना कठिन है, लेकिन अकेले लड़ना सबसे कठिन”

कार्यक्रम में उपस्थित अधिकारियों और स्वास्थ्यकर्मियों ने सामूहिक संकल्प लिया कि अब कोई भी गंभीर रोगी अवसाद, दर्द और उपेक्षा में नहीं जिएगा।

सरकार, चिकित्सक, परिवार और समाज – सभी को मिलकर यह भावनात्मक जिम्मेदारी निभानी होगी कि “बीमारी से लड़ना कठिन है, पर अकेले लड़ना सबसे कठिन।”


कार्यक्रम में उपस्थित रहे

इस अवसर पर डॉ मो. जैगम, स्तुति कक्कड़, देवनंदन श्रीवास्तव, नीरज कुमार, मोहम्मद शकील, अभिषेक कश्यप, महेंद्र कुमार, सरिता सिंह, विकास वर्मा सहित बड़ी संख्या में अधिकारी-कर्मचारी एवं जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।

विश्व धर्मशाला एवं प्रशामक देखभाल दिवस सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं बल्कि एक भावनात्मक आंदोलन है —
जिसका लक्ष्य है “दर्द को कम करना नहीं, बल्कि जीवन को बेहतर बनाना।”
जब तक गंभीर रोग से जूझ रहा हर व्यक्ति मुस्कुरा नहीं लेता, तब तक यह अभियान जारी रहेगा।

यही है सही मायने में ‘सेवा से समर्पण’ की मिसाल।

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