“सीडीओ के प्रयासों से लौट आई रौशनी और उम्मीद: जब अंधेरे से निकले स्कूल और बच्चों को मिला उज्जवल भविष्य का तोहफा”
लखीमपुर खीरी, 25 जुलाई।
कभी जहां अंधेरा था, पसीने से भीगे बच्चों की खामोश आंखों में सिर्फ इंतजार था, वहीं अब वही कक्षाएं रौशनी में नहाई हैं और उनमें गूंज रही है सीखने की मुस्कान। एक प्रशासनिक अधिकारी के संकल्प ने न केवल एक विद्यालय में बिजली लौटाई, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के सपनों को फिर से जगाया।
ये कहानी है लखीमपुर खीरी के उच्च प्राथमिक विद्यालय सांडा की, जहां कई महीनों से बिजली गायब थी। न पंखा था, न लाइट, और स्मार्ट क्लास की कल्पना भी बेमानी थी। लेकिन जब मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) अभिषेक कुमार निरीक्षण के लिए स्कूल पहुंचे, तो उन्होंने हालात देखे बिना किसी देरी के फैसला लिया — “बिजली आएगी, और जल्दी आएगी।”
उन्होंने न तो कोई सरकारी फाइल पलटी, न ही किसी रिपोर्ट का इंतजार किया। मौके पर ही उन्होंने बिजली पोल लगाने, वायरिंग कराने और तत्काल कनेक्शन जोड़ने के निर्देश दिए। सीडीओ के आदेश के बाद बिजली विभाग और शिक्षा विभाग की टीम ने अभूतपूर्व तेजी से काम करते हुए स्कूल तक लाइन पहुंचाई।
आज जब सीडीओ अभिषेक कुमार दोबारा विद्यालय पहुंचे, तो स्कूल बदला हुआ था — दीवारें चमक रही थीं, पंखे घूम रहे थे, प्रोजेक्टर चालू था और बच्चों की आंखों में सपनों की रौशनी थी। शिक्षक भावुक थे। कई ने तो सीडीओ को गले लगाकर धन्यवाद दिया।
सीडीओ ने इस अवसर पर कहा,
“सरकारी योजनाएं कागज़ों पर नहीं, बच्चों के चेहरों पर नजर आनी चाहिए। मेरा प्रयास है कि मा. मुख्यमंत्री जी की मंशानुरूप जिले का कोई भी विद्यालय सुविधाओं से वंचित न रहे।”
“पॉलिथीन में लाते थे किताबें, अब सीडीओ ने थमाया भविष्य का बैग”
एक और मार्मिक दृश्य सामने आया परिषदीय विद्यालय कुंवरपुर में। निरीक्षण के दौरान सीडीओ ने देखा कि बच्चे पॉलिथीन में किताबें लेकर स्कूल आ रहे हैं। जांच में पाया गया कि डीबीटी योजना के तहत बैग और स्टेशनरी की धनराशि भेजी जा चुकी थी, फिर भी बच्चों के पास जरूरी सामग्री नहीं थी।
सीडीओ अभिषेक कुमार इस दृश्य से विचलित हो गए। उन्होंने न तो बहाने ढूंढे, न ही दोषारोपण किया। बल्कि आगे बढ़कर एक मानवीय पहल करते हुए अपने निजी खर्च से सभी 30 बच्चों को स्कूल बैग और स्टेशनरी किट भेंट की। किट में पेंसिल, रबर, कटर, स्केल, ज्योमेट्री बॉक्स, स्केच और रंग भी शामिल थे।
बच्चों के चेहरे जैसे ही बैग मिले, चमक उठे। उत्साह और उल्लास से भरे बच्चों की आंखों में एक नई उम्मीद और पढ़ाई के प्रति लगाव साफ दिखाई दिया।
एक मिसाल बनी संवेदनशील प्रशासनिक पहल
सीडीओ अभिषेक कुमार का यह दौरा केवल एक औपचारिकता नहीं था, बल्कि उन बच्चों के लिए नई सुबह लेकर आया, जो अब तक उपेक्षा और संसाधनों के अभाव में पढ़ाई से दूर होते जा रहे थे।
उनका यह मानवीय रुख बताता है कि जब प्रशासन संवेदनशील हो, तो योजनाएं किताबों से निकलकर जमीनी हकीकत बन जाती हैं। अब सांडा और कुंवरपुर के बच्चे न केवल बिजली में पढ़ रहे हैं, बल्कि एक ऐसे उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं, जिसकी पहली ईंट सीडीओ के संकल्प ने रखी है।
यह केवल विकास नहीं, बल्कि विश्वास की लौ है जो जल उठी है… और अब रुकने वाली नहीं।
